कुछ नुक्कड़ ऐसे होते हैं, जिनके बगैर रास्ता पूरा नही हो सकता,
बकलम खुद ही कुछ रास्ते तय करने ,
कुछ बोलने, कुछ सुनने,
मंजिलों की चमकती दुनिया से अलग,
राह के हर कंकड से बचने का लुत्फ़ उठाने,चल पड़े हैं हम, मैं और मेरी तन्हाई....
इस बेकारी के चश्मे में , जहाँ बंदिशें मानों धुल सी गयी हैं,
ताज़े पानी की हर बूँद सा हर ताजा ख्वाब जहां लफ़्ज़ों के मार्फ़त बयाँ होता है,
उस ज़हाँ में, भले ही कल्पना में ही सही , स्वच्छ चमकते धारे की तरह बहते हुए ज़ज्बात....
इस्तकबाल है आप का ,
सुनता है जो ज़मीर का ,
न गरीब का , न अमीर का ,न खुदा का न भगवान का,मज़मा है ज़बान का.....
आपका
Suvigya Mishra
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