दुःख उन दो कटे हुए सरों को देखकर तो बहुत होता, लेकिन इन झुके हुए सरों को देख कर आक्रोश उससे भी ज्यादा है।
भगवन भी उनकी आत्मा को शांति नही दे सकते जो ऐसे हिजड़े आकाओं की कुर्सी से चलने वाले पिलपिले लोकतंत्र की सरहद पर कुर्बान हुए।
हमारे गांधीजी होते, तो कहते , एक का सर कट गया तो अगले का सर आगे कर दो।
एक दो गाँधी आज भी हैं, वो क्या कहेंगे इससे फरक नही पड़ता क्यूंकि वो जो कहते हैं, वो कभी करते नही।
1947 कश्मीर में बमबारी हो रही थी जब हम 550 मिलियन रुपये इस्लामाबाद भेज रहे थे। मैं इतिहास में जीना नही चाहता लेकिन दुःख की बात है वो पचपन करोड़ आज भी दिए जा रहे हैं, रोज़ कई तरीकों से, अनेक माध्यमों से .
आज भी हम बाएं हाथ से हाथ मिला रहे हैं उस पड़ोसी से, जो हमारे दाहिने हाथ पर वार कर रहा है और रोते बिलखते कहते भी जा रहे हैं की हम शांति वार्ता नही रोकेंगे कुछ भी हो जाये
उनका विदेश मंत्रालय कहता है , जनाब हम करोडो भारतीयों के चिल्लाने पर जवाब नही देंगे ,
सही कहता है, जहाँ बेगैरती हो, वहां गाली काम नही आती, गोली चलानी पड़ती है .
मैं नही कहता की युद्ध छेड़ दो, हमें युद्ध की कोई ज़रुरत नही है, बस सीमा में 40-50 मील घुस कर, चीथड़े उड़ा कर वापस आ जाओ एल ओ सी, , पर नहीं, बस कठोर शब्दों में निंदा करते रहेंगे
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उनके साथ इतना आतंकवाद कर दो की कराची पोर्ट पर से समुद्र भे कूद जाएँ पर खाड़ी में कैम्प बनाने की सोच भी न सके।
उस दिन इन दोनों सरों का , दोनों वीरों का, हिसाब हमारे 'सर' से चुकता हो सकेगा .
जय हिन्द