आदत सी पड़ गयी है मुझे इस बेरुखी की यूँ तो ...
पर तेरे ठुकराने के इंतज़ार का मजा कुछ और ही है .
मुझे भी इल्म है, तुझे भी इल्म है जालिम ,
पर तेरी इबारत में लिखी इस जुदाई के इंतज़ार का, मज़ा कुछ और ही है ..
न ये समझ लेना किसी गलत फ़हमी में जी रहा हूँ मैं,
आफ़ताब इश्क में बेवफाई के ,इंतज़ार का मज़ा कुछ और ही है
कहने को तो तुझमे ऐसा क्या है जो इस कद्र की तड़प है मेरी....
पर सच्चे आशिक की रुसवाई के .. इंतज़ार का मजा कुछ और ही है ...